गोवत्स द्वादशी व्रत कथा Govatsa Dwadashi Vrat katha
बहुत पुरानी बात है .सुवर्णपुर नामक नगर में एक राजा राज्य करता था. राजा का नाम देवदानी था.उसके दो रानियां थी एक का नाम सीता तथा दूसरी पत्नी का नाम गीता था. देवदानी की पहली पत्नी सीता भैंसों से बहुत लगाव करती थी जबकि देवदानी राजा की दूसरी पत्नी गीता गायों से बहुत लगाव करती थी .कुछ समय बाद गीता की गाय के एक सुंदर सा बछड़ा पैदा हुआ और गीता की गाय के बछड़े को सब बहुत प्यार करते थे .यह देखकर सीता और उसकी भैंस, गाय और उसके बछड़े से जलने लगी और एक दिन सीता ने ईष्यावश होकर गाय के बछड़े को काटकर गेहूं की राशि में दबा दिया. इस घटना के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं चला. थोड़ी देर बाद जब राजा भोजन करने के लिए बैठे तो आसमान से मांस और खून की वर्षा होने लगी राजा की भोजन की थाली रक्त से सन गई .महल में चारों तरफ रक्त और मांस दिखाई देने लगता है ,यह देखकर राजा अत्यंत चिंतित और परेशान हो गया.
तभी आकाशवाणी होती है कि “हे राजन तेरी रानी ने गाय के बछड़े को काटकर गेहूं की राशि में दबा दिया है जिसकी वजह से यह सब हो रहा है.कल गोवत्स द्वादशी है इसीलिए कल भैंस को नगर से बाहर निकाल दें. गाय और उसके बछड़े की पूजा कर. गाय के दूध और कटे हुए फलों का भोजन में उपयोग ना करना .ऐसा करने से आपके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे और बछड़ा भी जीवित हो जाएगा .”
आकाशवाणी के अनुसार अगले दिन राजा ने अपनी रानियों सहित गाय और बछड़े की पूजा की जिससे रानी के सारे पाप का विनाश हुआ और गाय का बछड़ा जो मर गया था पुनः जीवित हो गया.